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ट्रेफिक जाम की समस्या होगी छूमंतर! द्वारका एक्सप्रेसवे को नेल्सन मंडेला मार्ग से जोड़ेगी 200 करोड़ी टनल परियोजना

द्वारका एक्सप्रेसवे को नेल्सन मंडेला मार्ग से जोड़ने के लिए बनाए जाने वाली रोड टनल का रास्ता अब साफ हो गया है. दरअसल दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल द्वारा जनसुनवाई के बाद इसकी डिटेल एसेसमेंट रिपोर्ट को पर्यावरण मंत्रालय को भेज दिया गया है, जिसके बाद इस पर कार्रवाई की जा सकेगी. इसके बनने के बाद दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली में शिव मूर्ति चौक से नेल्सन मंडेला मार्ग तक लगने वाले यातायात जाम को खत्म किया जा सकेगा. इसके बाद द्वारका एक्सप्रेसवे, दिल्ली- जयपुर और दिल्ली-फरीदाबाद हाईवे की कनेक्टिविटी भी हो जाएगी.
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ट्रेफिक जाम की समस्या होगी छूमंतर! द्वारका एक्सप्रेसवे को नेल्सन मंडेला मार्ग से जोड़ेगी 200 करोड़ी टनल परियोजना

New Connectivity: दिल्ली में यातायात जाम की समस्या से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। द्वारका एक्सप्रेसवे को नेल्सन मंडेला मार्ग से जोड़ने के लिए बनने वाली रोड टनल का रास्ता अब साफ हो गया है। इस परियोजना से न सिर्फ दिल्लीवासियों को राहत मिलेगी, बल्कि इससे विभिन्न हाईवे और एक्सप्रेसवे के बीच कनेक्टिविटी भी बेहतर होगी।

यह रोड टनल शिव मूर्ति चौक से लेकर नेल्सन मंडेला मार्ग तक यातायात के दबाव को कम करेगा। इससे दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली में यातायात जाम की समस्या हल होगी।द्वारका एक्सप्रेसवे, दिल्ली-जयपुर और दिल्ली-फरीदाबाद हाईवे के बीच कनेक्टिविटी स्थापित होने से यात्रा में आसानी होगी।

इस टनल के बनने से दिल्ली से गुरुग्राम जाने वाले यात्रियों को जाम से निजात मिलेगी। साथ ही मानेसर और चंडीगढ़ जाने वाले लोगों के लिए यात्रा आसान हो जाएगी। दिल्ली एयरपोर्ट के टर्मिनल 3 पर जाने वाले यात्रियों के लिए भी ट्रैफिक जाम से मुक्ति मिलेगी।

इस टनल के बाद मुनीरका और वसंत कुंज सीधे गुरुग्राम एक्सप्रेसवे और द्वारका एक्सप्रेसवे से जुड़ जाएंगे, जिससे इन इलाकों के लोग अधिक सुलभ तरीके से यात्रा कर सकेंगे। इस परियोजना की अनुमानित लागत करीब 2000 करोड़ रुपए है, और इसे नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा बनाया जाएगा। यह परियोजना 4.78 किलोमीटर लंबी होगी और इसकी कार्यवाही जनवरी 2024 में शुरू की गई थी।

रोड टनल के निर्माण से पहले पर्यावरणीय प्रभाव का विश्लेषण किया गया। 18 और 19 सितंबर को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जनसुनवाई आयोजित की गई थी, जिसमें स्थानीय निवासियों से राय और सुझाव लिए गए थे। इस प्रक्रिया के बाद पर्यावरण मंत्रालय को एसेसमेंट रिपोर्ट भेजी गई है।