महिला नागा साधु की दिनचर्या होती है बड़ी खास, पीरियड्स के दौरान इस तरह करती है गंगा स्नान....

प्रयागराज में महाकुंभ का पर्व जोर शोर पर चल रहा है जो कि 13 जनवरी से शुरू हुआ था। इसी के चलते मकर संक्रांति पर 3.5 करोड़ श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाकर शाही स्नान किया। इस दौरान वहां 13 अखाड़ों के नागा साधु और महिला साध्वी भी मौजूद रही।
इस भक्तिमय माहौल में सबसे पहले नागा साधुओं ने स्नान किया। इसके बाद महिला साध्वियों ने गंगा में डुबकी लगाई। अब इसी को लेकर लोगों के मन में यह सवाल आता है कि महाकुंभ के दौरान अगर महिला साधु को मासिक धर्म हो जाए तो वो इसमें कैसे शामिल होती होगी ?
तो चलिए इस सवाल का जवाब आज हम आपको बता ही देते है और साथ ही महिला साध्वी से जुड़ी अन्य जानकारियां भी आज हम आपसे साझा करेंगे.... तो बने रहिए हमारे साथ और आर्टिकल पूरा पढ़े.....
बता दें कि महिला नागा साधु केवल तभी गंगा स्नान करती हैं जब उन्हें मासिक धर्म ना हो रहा हो। वहीं अगर कुंभ के दौरान उन्हें पीरियड्स आ जाएं तो वो गंगा जल के छींटे अपने ऊपर छिड़क लेती हैं। लेकिन गंगा में स्नान नहीं करती और इस तरह से मान लिया जाता है कि महिला नागा साधु ने गंगा स्नान कर लिया है।
महिला साध्वी सदैव नागा साधुओं के बाद ही करती है स्नान
महाकुंभ के दौरान पुरुष नागा साधु के स्नान करने के बाद ही साध्वी गंगा नदी में स्नान के लिए उतरती है। आपको बता दें कि अखाड़े की महिला नागा साध्वियों को माई, अवधूतानी या नागिन कह कर संबोधित किया जाता है।
वहीं नागा साधु बनने के लिए पहले इन्हें जीवित रहते ही अपना पिंडदान करना होता है और मुंडन भी कराना पड़ता है। साथ ही साथ नागिन साधु बनने के लिए इन्हें 10 से 15 साल तक तक कठिन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है।
केसरिया रंग के वस्त्र धारण किए होती है ये महिलाएं
महिला नागा साधु, पुरुष नागा साधुओं से कई तरह अलग होती हैं। वे दिगंबर नहीं रह सकती। उनकी भी एक मर्य़ादा होती है। ये सभी केसरिया रंग के वस्त्र धारण करती हैं। लेकिन वह वस्त्र सिला हुआ नहीं होता। इसलिए उन्हें पीरियड्स के दौरान किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है।
कैसे बनती हैं महिला नागा साधू
नागा साधु या संन्यासनी बनने के लिए 10 से 15 साल तक कठिन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। नागा साधु बनने लिए गुरु को विश्वास दिलाना पड़ता है कि वह महिला नागा साधु बनने के लिए पूर्णतया रूप से योग्य हैं।
साथ ही वह खुद को ईश्वर के प्रति समर्पित कर चुकी हैं। इसके बाद गुरु ही नागा साधु बनने की स्वीकृति देते हैं।
नागा साधु बनने से पहले महिला की बीते जीवन को देखकर यह पता किया जाता है कि वह ईश्वर के प्रति समर्पित है या नहीं और वह नागा साधु बनने के बाद कठिन साधना कर सकती है या नहीं। नागा साधु बनने से पहले महिला को जीवित रहते ही अपना पिंडदान करना होता है और मुंडन भी कराना पड़ता है।
महिला नागा साधु का भोजन होता है कुछ ऐसा
पुरुषों की तरह ही महिला नागा साधु भी महादेव की भक्ति में रंगी होती है। सुबह ब्रह्म मुहुर्त में उठकर महादेव का जाप करती हैं और शाम को दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती है।
इनका जप निरंतर चलता रहता है। वहीं ये नागा साधु खाने में कंदमूल फल, जड़ी-बूटी, फल और कई तरह की पत्तियां भोजन में पाती हैं।
2013 के कुंभ मेले में पहली दफा मिली थी पहचान
करीब 10 साल पहले वर्ष 2013 में इलाहाबाद कुंभ में पहली नागा महिला अखाड़े को अलग पहचान मिली थी। ये अखाड़ा संगम के तट पर जूना संन्यासिन अखाड़ा के तौर पर सर्वप्रथम देखा गया। उस समय नागा महिला अखाड़े की नेता दिव्या गिरी थीं।
जिन्होंने साधु बनने से पहले इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड हाइजिन, नई दिल्ली से मेडिकल टैक्नीशियन की पढ़ाई पूरी की थी।
वर्ष 2004 में वह विधिवत तौर पर वह महिला नागा साधु बन गईं। तब उन्होंने कहा था कि हम कुछ चीजें अलग से करना चाहती हैं। जूना अखाड़े के इष्टदेव भगवान दत्तात्रेय हैं, हम अपना इष्टदेव दत्तात्रेय की मां अनुसूइया को बनाना चाहती हैं।
आखिर कौन है माता अनुसूइया
ऋषि अत्रि और भगवान दत्तात्रेय की माता का नाम अनुसूया है। वह अपने पतिव्रता धर्म के लिए जानी जाती थीं। जबकि ब्रह्मा, महेश और विष्णु की पत्नियों को लगता था कि वो सबसे ज्यादा पतिव्रता हैं।
लेकिन जब महर्षि नारद ने तीनों को बताया कि धरती पर अनुसूया उनसे ज्यादा पतिव्रता हैं तो तीनों को ये बता बहुत चुभ गई।
तीनों ने अपने पतियों से कहा कि अनुसूइया की परीक्षा लेनी चाहिए। आखिरकार ब्रह्मा, विष्णु और महेश को उनकी परीक्षा लेने चल पड़े। तब ये परीक्षा ऐसी हुई कि माता अनुसूया का दर्जा देवी के के रूप में श्रेष्ठ हो गया।