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Sasur Bahu: हरियाणा की बहू ने ससुर को दिया नया जीवन, ये काम कर लोगों के लिए बनी मिसाल

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Liver

परिवार का असली अर्थ तब समझ आता है जब कोई अपनों के लिए निःस्वार्थ बलिदान देने को तैयार हो। भिवानी सिविल जज सीनियर डिविजन के पद पर तैनात जोगेंद्र सिंह की धर्मपत्नी कुसुम ने अपने ससुर को लीवर (Liver) दान कर समाज में एक नई मिसाल कायम की है। उनकी यह अनूठी पहल केवल परिवार के प्रति उनकी गहरी निष्ठा को ही नहीं दर्शाती, बल्कि उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा बनती है जो अपने रिश्तों को आत्मीयता और समर्पण की भावना से निभाती हैं।

बहू ने दिखाया बेटे से बढ़कर प्यार

मूल रूप से महेंद्रगढ़ के बुच्चावास निवासी कृष्ण कुमार करीब सात साल पहले लीवर की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। डॉक्टरों ने उन्हें जल्द से जल्द लीवर ट्रांसप्लांट (Liver Transplant) कराने की सलाह दी, लेकिन उपयुक्त डोनर (Donor) न मिलने के कारण परिवार चिंता में था। परिवार के कई सदस्यों ने स्वास्थ्य समस्याओं या ब्लड ग्रुप (Blood Group) न मिलने के कारण लीवर दान करने में असमर्थता जताई। ऐसे में जोगेंद्र सिंह की पत्नी कुसुम ने आगे बढ़कर अपने ससुर को नया जीवनदान देने का निर्णय लिया।

कुसुम के इस फैसले ने न केवल उनके परिवार में बल्कि समाज में भी एक नई सोच को जन्म दिया। जब उन्होंने लीवर डोनेट (Donate) करने की इच्छा जताई, तो परिवार के सदस्य चिंतित हो गए। सभी ने उन्हें यह निर्णय लेने से रोका क्योंकि यह बेहद जोखिमभरा (Risky) कदम था। लेकिन कुसुम अपने फैसले पर अडिग रहीं। उन्होंने कहा, "उन्होंने मुझे बेटी की तरह अपनाया है, मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं उन्हें बचाने के लिए हर संभव कोशिश करूं।"

ऑपरेशन के बाद ससुर को मिली नई जिंदगी

कुसुम का यह फैसला उनके परिवार के लिए किसी वरदान से कम नहीं था। चिकित्सकों की देखरेख में सफलतापूर्वक ऑपरेशन हुआ और कुसुम का लीवर ट्रांसप्लांट उनके ससुर के शरीर में कर दिया गया। कुछ महीनों के उपचार और देखभाल के बाद कृष्ण कुमार पूरी तरह स्वस्थ हो गए और सामान्य जीवन जीने लगे। कुसुम के इस बलिदान ने न केवल उनके ससुर को नया जीवन दिया, बल्कि पूरे परिवार में खुशी की एक नई किरण जगा दी।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर बनी प्रेरणा

इस साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day) पर कुसुम की यह कहानी उन महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बनेगी जो समाज में बदलाव लाने की क्षमता रखती हैं। अक्सर बहुओं और ससुराल वालों के बीच रिश्तों को लेकर नकारात्मक बातें सुनने को मिलती हैं, लेकिन कुसुम ने इन धारणाओं को तोड़ते हुए यह साबित कर दिया कि बहू भी बेटी से कम नहीं होती।

उनका यह कदम समाज के लिए एक संदेश है कि जब रिश्ते सच्चे प्रेम और समर्पण से निभाए जाते हैं, तो वे किसी भी कठिनाई से पार पा सकते हैं। आज कुसुम की कहानी न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि उन सभी बहुओं के लिए गर्व की बात है जो अपने ससुराल को सिर्फ एक रिश्ता नहीं बल्कि अपना परिवार मानती हैं।

बलिदान का अनूठा उदाहरण

कुसुम ने यह साबित कर दिया कि महिलाएं किसी भी भूमिका में हों चाहे वह मां हो, बहन हो, पत्नी हो या बहू उनका योगदान अमूल्य होता है। समाज को यह समझना होगा कि महिलाओं का अस्तित्व सिर्फ घर की चार दीवारों तक सीमित नहीं है, बल्कि वे हर क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

आज जब महिलाएं देश की सेना से लेकर अंतरिक्ष मिशन (Space Mission) तक में अपनी छाप छोड़ रही हैं, तब कुसुम जैसी महिलाएं घरेलू स्तर पर भी अपनी शक्ति और साहस का परिचय दे रही हैं। उनका यह कदम निश्चित रूप से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद करेगा और अन्य लोगों को भी अंगदान (Organ Donation) जैसे नेक कार्यों के लिए प्रेरित करेगा।