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शादीशुदा महिला अब नहीं कर सकती ये काम, हाईकोर्ट ने सुना दिया ये बड़ा फैसला

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Individual Freedom

कानूनी मामलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Individual Freedom) का विषय हमेशा से चर्चाओं में रहा है। खासकर जब बात विवाह (Marriage) और लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) की हो तो यह विषय और भी संवेदनशील हो जाता है। हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें शादीशुदा महिला अपने पति को छोड़कर किसी अन्य व्यक्ति के साथ लिव-इन में रह रही थी। इस मामले में महिला ने अपनी सुरक्षा (Security Appeal) को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था लेकिन हाईकोर्ट ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए एक अहम फैसला सुना दिया है।

कोर्ट ने खारिज की याचिका

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने इस केस की सुनवाई करते हुए महिला और उसके लिव-इन साथी द्वारा दायर की गई सुरक्षा याचिका को सिरे से खारिज कर दिया। दोनों ने अपने जीवन को खतरे में बताते हुए सुरक्षा (Protection Demand) की मांग की थी लेकिन अदालत ने इसे अनुचित ठहराया।

न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि शादीशुदा महिला का किसी अन्य व्यक्ति के साथ लिव-इन में रहना सामाजिक और कानूनी दृष्टि से सही नहीं है। इसके अलावा कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए 5000 रुपये का जुर्माना भी लगाया जिसे उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (Legal Service Authority) में जमा करने का निर्देश दिया गया।

लिव-इन पर अदालत की टिप्पणी

संविधान का अनुच्छेद 21 (Article 21) प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से जीवन जीने का अधिकार देता है लेकिन यह अधिकार असीमित नहीं है। कोर्ट ने कहा कि विवाह के बाद एक महिला का दूसरे पुरुष के साथ लिव-इन में रहना (Live-in after Marriage) सामाजिक मूल्यों के खिलाफ है। अदालत ने अपनी टिप्पणी में यह भी जोड़ा कि समाज में ऐसे गलत रिश्तों को बढ़ावा देने वाली याचिकाओं को स्वीकार करना न्याय संगत नहीं होगा।

कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कानूनी स्वतंत्रता का यह मतलब नहीं कि कोई भी अपने विवाहित जीवन को छोड़कर किसी अन्य के साथ बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के रहने लगे। यह सामाजिक मूल्यों और नैतिकता के विरुद्ध है।

महिला ने बताई थी जान के खतरे की बात

इस याचिका में महिला और उसका साथी जो कि अलीगढ़ के निवासी हैं ने अदालत से सुरक्षा की मांग की थी। उन्होंने तर्क दिया कि महिला के पति और परिवार वाले उनके रिश्ते को स्वीकार नहीं कर रहे हैं और इससे उनकी जान को खतरा (Life Threat) बना हुआ है। उनका कहना था कि वे अपनी मर्जी से साथ रह रहे हैं और इसमें बाहरी हस्तक्षेप (Interference) नहीं होना चाहिए।

हालांकि अदालत ने इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि यदि किसी को अपने वैवाहिक जीवन में समस्या है तो उसके लिए कानूनी विकल्प मौजूद हैं। बिना तलाक लिए किसी अन्य के साथ रहना सही नहीं ठहराया जा सकता।

क्या कहता है कानून?

भारत में लिव-इन रिलेशनशिप (Legal Status of Live-in) को लेकर कोई विशेष कानून नहीं है लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कई मामलों में मान्यता दी है। हालांकि जब कोई महिला पहले से शादीशुदा हो तब यह स्थिति जटिल हो जाती है। भारतीय विवाह अधिनियम (Marriage Act) के तहत यदि कोई शादीशुदा महिला अपने पति को छोड़कर किसी अन्य के साथ लिव-इन में रहती है तो इसे अनैतिक संबंध (Illicit Relationship) माना जा सकता है।