किसानों ने हरियाणा सरकार को दी चेतावनी, कल से होगा व्यापक धरना-प्रदर्शन, ये है मुख्य मांगें

हरियाणा के किसानों का गुस्सा एक बार फिर सड़कों पर दिखेगा क्योंकि संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर मंगलवार 11 मार्च को विभिन्न जिलों में बड़े पैमाने पर धरना-प्रदर्शन किया जाएगा। इस दौरान किसान मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपेंगे और अपनी मांगों को मजबूती से उठाएंगे।
ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के जिलाध्यक्ष कामरेड राजकुमार सारसा और जिला सचिव कामरेड कृष्ण चंद ने इस बारे में बयान जारी करते हुए कहा कि सरकार की जनविरोधी (anti-people) नीतियों के खिलाफ किसानों को एकजुट होना होगा।
सरकार पर जनविरोधी नीतियां थोपने का आरोप
किसान संगठनों का आरोप है कि चाहे केंद्र में मोदी सरकार हो या प्रदेश सरकार दोनों ही लगातार ऐसे फैसले ले रही हैं जो किसानों और मजदूरों के हितों के खिलाफ हैं।
किसान नेताओं ने कहा कि सरकार किसानों की आवाज़ सुनने को तैयार नहीं है और संवाद (dialogue) का सिर्फ दिखावा किया जा रहा है। बार-बार ज्ञापन सौंपने के बावजूद किसानों की किसी भी मांग पर ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
किसान संगठनों का दावा है कि पुराने तीन कृषि कानूनों से भी अधिक खतरनाक नीतियां अब नए कृषि बाजार सुधार (agricultural market reforms) के नाम पर लागू करने की तैयारी की जा रही है। किसानों का कहना है कि यह कदम खेती को पूंजीपतियों के हाथों में सौंपने की दिशा में बढ़ाया जा रहा है जिससे किसान और मज़दूरों को भारी नुकसान होगा।
ये हैं किसानों की मुख्य मांगें
धरना-प्रदर्शन के दौरान किसान संगठन कुछ प्रमुख मांगों को उठाएंगे जिनमें शामिल हैं:
एमएसपी (Minimum Support Price) पर फसल खरीद का कानून बनाया जाए ताकि किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम मिल सके।
बिजली संशोधन बिल 2022 (Electricity Amendment Bill 2022) को तुरंत वापस लिया जाए।
किसानों को कर्ज मुक्त किया जाए ताकि वे आर्थिक तंगी से बाहर आ सकें।
खाद बीज कीटनाशक और कृषि उपकरण सस्ती दरों पर उपलब्ध कराए जाएं ताकि खेती की लागत कम हो।
बुजुर्ग किसानों को 10000 रुपये मासिक पेंशन दी जाए जिससे वे सम्मानजनक जीवन जी सकें।
मनरेगा (MNREGA) में पूरे साल काम दिया जाए और दिहाड़ी बढ़ाकर 700 रुपये प्रतिदिन की जाए।
बेमौसमी बारिश और ओलावृष्टि से हुए नुकसान का तुरंत मुआवजा दिया जाए।
किसानों के खिलाफ दमनकारी नीतियों (repressive policies) को रोका जाए और आंदोलनकारी किसानों पर दर्ज मुकदमों को वापस लिया जाए।
किसान आंदोलन रहेगा जारी
किसान संगठनों ने साफ कर दिया है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होती उनका आंदोलन जारी रहेगा। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकार संवेदनशील (sensitive) रुख नहीं अपनाती तो आंदोलन और भी उग्र होगा।
संयुक्त किसान मोर्चा के प्रवक्ताओं ने कहा कि सरकार को किसानों की मांगों को नज़रअंदाज करने की भूल नहीं करनी चाहिए। किसान संगठन लंबे समय से एमएसपी गारंटी कानून और अन्य मांगों को लेकर संघर्षरत हैं और संविधानिक (constitutional) तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
एसडीएम को ज्ञापन सौंपा
इसी क्रम में भारतीय किसान यूनियन ने भी सोमवार को विभिन्न मांगों को लेकर एसडीएम (SDM) को ज्ञापन सौंपा। यूनियन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रामफल कंडेला की अगुवाई में किसान लघु सचिवालय (Mini Secretariat) पहुंचे और एसडीएम सत्यवान मान को डीसी के नाम ज्ञापन सौंपा।
इस ज्ञापन में निम्नलिखित मांगें रखी गईं:
खेती को विश्व व्यापार संगठन (WTO) से बाहर किया जाए ताकि भारतीय किसानों को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा से बचाया जा सके।
हरियाणा के किसानों को गेहूं की फसल पर प्रति एकड़ 1000 रुपये बोनस दिया जाए।
हाल ही में हुई बेमौसमी बारिश और ओलावृष्टि से खराब हुई फसलों का मुआवजा तुरंत दिया जाए।
सरसों की खरीद जल्द शुरू की जाए ताकि किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल सके।
जींद की नई अनाज मंडी में फड़ों की मरम्मत (repair) जल्द से जल्द पूरी करवाई जाए।
सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति
किसान संगठनों की रणनीति है कि सड़कों पर आंदोलन तेज किया जाए और सरकार पर दबाव बनाया जाए। किसान संगठनों के अनुसार वे सरकार से बार-बार गुहार लगा चुके हैं लेकिन हर बार केवल आश्वासन (assurance) ही मिला है ठोस समाधान नहीं।
संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने कहा कि किसानों को अब अपने हक़ की लड़ाई और मजबूती से लड़नी होगी। उन्होंने आह्वान किया कि हर किसान को आंदोलन का हिस्सा बनना चाहिए और अपने अधिकारों के लिए सरकार से जवाब मांगना चाहिए।