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हरियाणा के इन 487 स्कूलों में नहीं कोई शिक्षक, सरकारी स्कूलों में लड़खड़ाई शिक्षा व्यवस्था

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Teachers

हरियाणा में सरकारी स्कूलों की हालत राम भरोसे हो गई है। प्रदेश में 487 सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहां एक भी टीचर (Teacher) नहीं है। अब ज़रा सोचिए जब गुरुजी ही गायब हैं तो विद्या कैसे आएगी? यह चौंकाने वाला खुलासा हरियाणा मौलिक शिक्षा विभाग के रेशनलाइजेशन कैंपेन (Rationalization Campaign) के दौरान हुआ।

हरियाणा में शिक्षा की यह हालत देखकर कोई भी कह सकता है, बिन गुरु ज्ञान कहां से आएगा? सरकारी स्कूलों की हालत बदतर हो चुकी है। रिपोर्ट के मुताबिक, 487 स्कूलों में कोई भी टीचर नहीं है यानी स्टूडेंट (Student) खुद से किताबें खोलकर ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं – अगर चाहें तो! मज़ेदार बात यह है कि प्रदेश के 294 स्कूलों में तो स्टूडेंट्स का एडमिशन (Admission) ही नहीं हुआ। मतलब स्कूल भी है इमारत भी खड़ी है लेकिन पढ़ाई के लिए न टीचर हैं और न स्टूडेंट्स!

हालात इतने खराब हैं कि सरकारी प्राइमरी स्कूलों में 2,262 टीचर्स की कमी है। वहीं सरकारी स्कूलों में स्टूडेंट्स और टीचर्स का अनुपात 28:1 का है लेकिन यह बैलेंस भी सिर्फ कागज़ों पर ही दिखता है।

सबसे ज्यादा बिना टीचर वाले स्कूल

अगर बिना टीचर वाले स्कूलों की बात करें तो यमुनानगर ने इस लिस्ट में ‘बिग बॉस’ (Big Boss) बनकर टॉप किया है।
यमुनानगर में 79 स्कूल ऐसे हैं जहां एक भी टीचर नहीं है।
पंचकूला में 45 और कुरुक्षेत्र में 34 स्कूल बिना टीचर के चल रहे हैं।
यमुनानगर में 32 स्कूलों में कोई भी स्टूडेंट नहीं आया।
अंबाला में 22 और हिसार में 17 स्कूल बिना स्टूडेंट के बंद पड़े हैं।

मतलब यह कि टीचर भी गायब और स्टूडेंट भी गायब, बस स्कूल की इमारतें खड़ी हैं। अब यह कहना गलत नहीं होगा कि ये स्कूल केवल सरकारी रिकॉर्ड्स में टिक मार्क (Tick Mark) लगाने के लिए बनाए गए हैं।

छोटे स्कूलों में स्टूडेंट्स की संख्या 20 से भी कम

हरियाणा में 1,095 स्कूल ऐसे हैं, जहां स्टूडेंट्स की संख्या 20 से भी कम है।
यमुनानगर में 132 स्कूलों में 20 से भी कम बच्चे हैं।

पंचकूला में 64 और करनाल में 62 ऐसे स्कूल हैं, जहां बच्चों की संख्या गिनती से ज्यादा नहीं बढ़ी।

अब सवाल उठता है कि जब सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या इतनी कम है, तो इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं?

बच्चे एडमिशन क्यों नहीं ले रहे?

हरियाणा प्राथमिक अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष हरिओम राठी का कहना है कि टीचरों की कमी की वजह से माता-पिता अपने बच्चों का एडमिशन सरकारी स्कूलों में नहीं कराते। अब कोई भी मां-बाप ये नहीं चाहेंगे कि उनका बच्चा स्कूल जाकर खाली क्लासरूम की दीवारें ताके!

हरिओम राठी का कहना है कि सरकार इन स्टूडेंट्स को नज़दीकी स्कूलों में शिफ्ट करने की योजना बना रही है। इसके लिए फ्री ट्रांसपोर्ट सर्विस (Free Transport Service) भी दी जाएगी ताकि स्टूडेंट्स को आने-जाने में परेशानी न हो।

2 साल पहले भी उठाया गया था मुद्दा

मजेदार बात यह है कि यह कोई नई समस्या नहीं है। 2 साल पहले भी इस मुद्दे को राज्यसभा में उठाया गया था।
2022 में 292 स्कूलों को बंद कर दिया गया था क्योंकि वहां स्टूडेंट्स की संख्या 25 से भी कम थी।
सरकार ने तब दावा किया था कि स्टूडेंट्स की कमी के कारण इन स्कूलों को बंद करना जरूरी था।

लेकिन असली सवाल यह है कि क्या सरकार बच्चों की शिक्षा को गंभीरता से ले रही है? अगर हां, तो फिर 487 स्कूलों में टीचर्स की नियुक्ति क्यों नहीं हो रही?